आग से खेल रहे दिग्विजय सिंह !

देश इन दिनों ज्वालामुखी के मुंह पर बैठा हुआ है...दरअसल चुनावों के ठीक पहले धर्म को लेकर जिस तरह की सियासत शुरु हुई है उसका अंजाम सोचकर ही डर लग रहा है....मुस्लिम आरक्षण से शुरु हुई बयानबाजी अब चार साल पुराने बाटला एन्काउन्टर पर जाकर टिक गई है....एक ओर दिग्विजय सिंह हैं जो कि बार बार एन्काउन्टर पर सवाल उठाते रहे हैं..वहीं दूसरी ओर केन्द्र सरकार के नुमाइंदे इसे सही बता रहे हैं... हालात कुछ बड़े विचित्र और उलझाउ बन पड़े हैं....आजमगढ़ में राहुल गांधी के विरोध के बाद दिग्विजय सिंह ने जिस तरह से इस मुद्दे को तूल दिया उससे खुद उन्ही की पार्टी सांसत में आ गई है....क्योंकि बाटला एन्काउन्टर जिस वक्त हुआ उस वक्त ना केवल दिल्ली में बल्कि केन्द्र में भी उन्ही की पार्टी की सरकार थी...ऐसे में दिग्गी राजा के इस बयान के बाद सवाल सबसे पहले सरकार पर ही उठेंगे....सवाल ये नहीं कि बटला एन्काउन्टर गलत था या सही बल्कि सवाल ये है कि इस बहाने जो राजनीति हो रही है वो काफी खतरनाक है....इस बात का अंदाजा या तो दिग्विजय सिंह को नहीं है या फिर अगर है भी तो वो आग से खेलने की कोशिश कर रहे हैं....खुद अपनी ही पार्टी की सरकार को कटघरे में खड़ा करके आखिर दिग्विजय सिंह को क्या मिलने वाला....दरअसल इसके पीछे जो कारण समझ में आता है वो यूपी चुनाव है.....मुस्लिम वोटों पर एकाधिकार स्थापित करने की नीयत से ही ये बयानबाजी की जा रही है.....आजमगढ़ में राहुल का विरोध जिस तरह से किया गया उससे कांग्रेसी रणनीतिकार खासे बेचैन हैं...ऐसे में राहुल के सलाहकार माने जाने वाले दिग्विजय सिंह अगर लगातार अपने बयान पर अड़े हैं तो समझना मुश्किल नहीं कि कहीं ना कहीं से उन्हें इसके लिए हरी झंडी जरूर मिल रही है...उधर इस मामले का असर भी सामने आना शुरु हो गया है......योगगुरु स्वामी रामदेव पर प्रेस कांफ्रेन्स के दौरान हमला भी इसी की एक कड़ी के रूप में देखा जा रहा है....हमला करने वाले कामरान सिद्दीकी के बारे में बताया जा रहा है कि वो रामदेव से बाटला हाउस मामले पर सवाल करना चाहता था....और अनुमति नहीं मिलने पर नाराजगी में ऐसा किया....लेकिन ये एक ऐसा तर्क है जो आसानी से नहीं पचता....क्योंकि रामदेव से ये सवाल पूछने का कोई बड़ा कारण नजर नहीं आता....अब इस पूरे परिदृश्य को गौर से देखने पर एक डर भी पैदा हो रहा है...डर ये कि क्या दिग्विजय सिंह की सियासी बयानबाजियों का असर होने लगा है....उधर दूसरी पार्टियों ने भी सरकार और दिग्विजय सिंह के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है....कुल मिलाकर चुनावी माहौल में नफरत की सियासत शुरु हो गई है....खुद को अल्पसंख्यकों का सबसे बड़ा रहनुमा साबित करने की होड़ में एक ऐसे मुद्दे को हवा दी जा रही है जिसका चैप्टर लगभग बंद हो चुका है.....इन सबके बीच मोहनचन्द्र शर्मा की याद किसी को नहीं आ रही.....उनके परिवार की सुध किसी को नहीं है.....इतना नहीं इस बात की भी परवाह नहीं कि अगर बाटला पर हो रही सियासत ने गंभीर रूप अख्तियार कर लिया तो नतीज़े क्या होंगे....और सबसे बड़ा सवाल ये कि बटला एनकाउन्टर के जिन्न को बार बार बोतल के बाहर निकालने पर क्या किसी खतरनाक आक्रोश को दावत नहीं दी जा रही........

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