ऐसा तो नहीं था गुजरात !

रोटी के बदले मारपीट, रोजगार के बदले धमकी, ऐसा तो नहीं था गुजरात!... सच में ऐसा नहीं था गुजरात....प्रवासियों के लिए जन्नत था गुजरात....गुजराती बसे विदेश में और बिहारी बसे उनके प्रदेश में...मगर अचानक ये आग किसने लगाई।  गुजरात से आने वाली सभी ट्रेनें फुल हैं, और इन ट्रेनों से वापसी करने वाले मायूस और डरे हुए हैं। ये जानते हुए कि वापस अपने घर आकर रोटी के लाले पड़ जाएंगे, मगर जान बची रहेगी तो कमा भी लेंगे...खा भी लेंगे...
आरा का रहने वाला रोहित अब वापस घर आ गया है, इसी साल गुजरात गया था, 10 हजार की नौकरी भी थी। मगर अचानक सबकुछ खत्म हो गया, चार दिन से घर का चूल्हा ठंडा है। परिवार का गुजारा कैसे चलेगा...कुछ नहीं पता।
ये कहानी अकेले रोहित की नहीं...इस जैसे अनगिनत युवकों की है जो रोटी की तलाश में गुजरात गए थे। उस गुजरात में जिसका गुणगान ये पीढ़ियों से सुनते आए थे। गांधी जी के जमाने से आज तक...इन्हें गुजरात भी अपना सा लगता था...लगे भी क्यों ना, आखिर गुजरात वाले गांधी जी जब बिहार आए तभी पूरे देश के हुए थे। बचपन में पढ़ाया गया ये संस्कार और जरुरतें बिहार के युवाओं को रोजी रोजगार की तलाश में गुजरात दशकों से खींचती आई हैं। मगर गांधी जी के जमाने से अब तक साबरमती और गंगा दोनों का पानी काफी बह चुका है। सिर्फ रोटी के लिए गुजरात रुख करने वालों को इस बात का आभास भी नहीं था कि जिस गुजरात की कहानियां किस्से वो सुनते आए हैं वो गुजरात अब बदल गया है। ठाकरे की काट ठाकोर से काटने को मचल रहा है।  गुजरात को जिन्हें सजाना था वो सजा चुके, अब बारी उजाड़ने की है। क्योंकि जब तक शहर उजड़ते नहीं सियासत के लिए गुंजाइश बनती नहीं
गुजरात को लेकर एक धारणा रही है, कि यहां के लोग कारोबार के अलावा और कोई भाषा नहीं समझते। यही वजह है कि हमेशा से यहां प्रवासियों का स्वागत हुआ है, वजह सस्ता श्रम। आज जिस गुजरात मॉडल की चर्चा होती है उसके पीछे प्रवासियों का खून पसीना लगा है। लेकिन बदलते गुजरात में बहुत सारी चीजें बदल गई हैं। एनआरआई के लिए मशहूर गुजरात में युवाओं का एक वर्ग ऐसा भी पैदा हुआ है जिसके हीरो कारोबारी, व्यापारी या एनआरआई नहीं बल्कि हार्दिक, अल्पेश, जिग्नेश जैसे उभरते युवा चेहरे हैं। और जिनकी सियासत का तरीका अलग है, और जिनके उग्र तेवर युवाओं को पसंद भी आ रहे हैं। वरना जिस आरक्षण को लेकर कभी गुजरातियों ने जिरह तक नहीं की, उस आरक्षण के लिए हार्दिक पटेल ने बड़ा आंदोलन खड़ा कर दिया, जिसका व्यापक समर्थन भी मिला। ऐसे ही दलित स्वाभिमान का उभार हुआ जिग्नेश मेवाड़ी के जरिए, तो अल्पेश ठाकोर अब ठाकोर समाज के हीरो बनने निकल पड़े हैं।
यानी गुजरात बदल रहा है, 2002 के गोधरा दंगों के बाद ध्रुवीकृत हुए समाज में अब और ज्यादा ध्रुवीकरण कराने की कोशिश जारी है। हिन्दू बनाम मुस्लिम का ध्रुवीकरण अब दलित, सवर्ण, क्षत्रिय समेत कई खांचों में हो रहा है। वजह साफ है समाज जितना ज्यादा बंटेगा, जातीय क्षत्रपों का उतना ज्यादा उभार होगा। ये प्रयोग महाराष्ट्र में कामयाब रहा है, अब लिटमस टेस्ट गुजरात में हो रहा है।
गुजरात के हालात पर नेता जो भी बोलें, अधिकारी जो भी दावे करें,  मगर जो सच है वो सच है। एक सच गुजरात से लौटे बिहारी लड़के अपने मोबाइल में कैद करके लाए हैं, इन लड़कों की मानें तो ये वीडियो मजदूर के साथ मारपीट का है, बेहद खौफनाक इस वीडियो में एक मजदूर को नंगा करके उलटा कर कोड़ों से पीटा जा रहा है, हालांकि इस वीडियो की सत्यता की पुष्टि होनी अभी बाकी है लेकिन अगर ये वीडियो सच निकला तो वाकई दिल कंपा देने वाला है। क्योंकि रोटी के बदले इस तरह की अमानवीयता किसी समाज में बर्दाश्त नहीं की जा सकती
ऐसा क्यों होता है कि हर बार नफरत का शिकार बिहारी मजदूर बनते हैं...वो मजदूर जिनके पसीने पर बड़े शहरों की इमारतें आबाद होती हैं, वो मजदूर जो खुद झुग्गियों में रहकर शहरों की चमक बढ़ाते हैं...मगर हर बार नफरत की आग में पहले वो ही झुलसते हैं...गंदी सियासत का शिकार हर बार वो ही होते हैं...चाहे मुंबई हो या अब गुजरात....ये सिलसिला थामना होगा...सियासत से अलग हटकर सोचना होगा...वरना अपने ही मुल्क में दुत्कारने का नतीजा विस्फोटक भी हो सकता है...

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