घुसपैठियों से ममता को मोहब्बत क्यों है?


देश में एनआरसी के बहाने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने एक नई बहस छेड़ दी है या यूं कहें कि असम के बहाने उन्हें 2019 में विपक्ष के सबसे बड़े चेहरे के तौर पर खुद को प्रचारित करने का आसान मौका मिल गया है, वरना कोलकाता से कम ही निकलने वाली ममता एनआरसी के मुद्दे पर दो दिन दिल्ली में टिकी रहीं। जाहिर है जो ममता बनर्जी को जानते हैं उन्हें पता है कि ममता बिना जरुरत के दिल्ली क्या कोलकाता से बाहर भी ना जाएं। लेकिन असम में एनआरसी के मसले ने ममता का बरसों पुराना ख्वाब दोबारा ज़िन्दा कर दिया है। हालांकि ममता बनर्जी का ये कदम कोरी राजनीति से प्रेरित है जिसके जरिए वो खुद को विपक्ष और उदारवादी राजनीति का सबसे बड़ा चेहरा साबित करने में जुट गईं हैं। मगर ममता बनर्जी की ये सियासत कई मायनों में बेहद खतरनाक है खासकर उनके इस बयान के बाद कि अवैध घुसपैठियों को बाहर भेजने से गृहयुद्ध और खूनखराबा शुरु हो जाएगा। असल में किसी भी नेता का बयान कई मायनों में बेहद महत्वपूर्ण होता है। जैसा कि हमने फिल्मों में खूब देखा कि नेता समर्थकों से अगर शांति की अपील करता है तो इसका मतलब ये होता है कि वो उन्हें अशांति फैलाने के लिए उकसा रहा है। अब सवाल उठता है कि क्या ममता बनर्जी गृहयुद्ध और खून खराबे की धमकी देकर सरकार पर दबाव बनाना चाहती हैं या फिर उन लोगों की नजर में नायिका बनना चाहती हैं जिनके वोट उनके लिए हर बार संजीवनी बन जाते हैं और जिनके बीच रहकर उन्होंने लेफ्ट का ढाई दशक पुराना किला नेस्तनाबूद कर दिया था। खैर ये पुरानी बातें हैं मगर सवाल उठता है कि आग से खेलने का आरोप केन्द्र सरकार पर लगाने वाली ममता क्या खुद आग से नहीं खेल रही हैं। वो भी तब जब इस मुद्दे पर पूरे विपक्ष के सुर दबे दबे से हैं।
सवाल ये नहीं कि ममता बनर्जी को ये सबकुछ पता नहीं है मगर उन्हें डर है कि कहीं असम की कहानी पश्चिम बंगाल में दोहरा दी गई तो मालदा समेत दूसरे सीमावर्ती जिलों से थोक भाव में मिलने वाले वोट उनकी झोली से निकल जाएंगे। इस बीच चुनाव आयोग ने भी बोल दिया है कि जो अवैध रुप से रह रहे हैं उन्हें वोटिंग का अधिकार भी नहीं मिलेगा। तो फिर ममता की परेशानी की वजह यही है क्या?
1971 के बाद से ही कई सरकारी और गैरसरकारी संस्थाओं की रिपोर्ट ने बार बार चेताया है कि भारत में अवैध रुप से आने वाले शरणार्थी कभी भी बड़ी समस्या बन सकते हैं, ये बात इस समय साबित हो रही है। सरकारी और गैर सरकारी आंकड़ों की माने तो देश में करीब तीन करोड़ से ज्यादा बांग्लादेशी घुसपैठिये अवैध रुप से रह रहे हैं। जिसकी वजह से सीमावर्ती प्रदेशों का जनसंख्या संतुलन बिगड़ गया है इतना ही नहीं  देश की राजधानी दिल्ली से लेकर बेंगलुरु, मुंबई जैसे ब़ड़े शहरों की झोपड़पट्टियों में अगर ठीक से जांच की जाए तो इनकी संख्या लाखों में मिलेगी। बिहार के सीमावर्ती जिले खासकर किशनगंज तो बांग्लादेशी घुसपैठियों के लिए दरवाजे का काम करता है। इसकी पुष्टि वक्त वक्त पर आए कई सर्वे भी करते हैं। इनमें असम के पूर्व राज्यपाल अजय सिंह की एक रिपोर्ट बेहद महत्वपूर्ण है जिसमें उन्होंने बताया है कि हर दिन करीब 6 हजार बांग्लादेशी भारत में घुसपैठ करते हैं। अजय सिंह की बातों की पुष्टि संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट भी करती है जिसमें बताया गया है कि पिछली जनगणना में बांग्लादेश से करीब एक करोड़ लोग गायब हो गए। इतना ही नहीं कई गैर सरकारी संस्थाओं की रिपोर्ट और एनसीआरबी के आंकड़े भी बताते हैं कि आपराधिक गतिविधियों खासकर जाली नोट के कारोबार, नशीली दवाओं के कारोबार, हथियार, पशु तस्करी जैसे मामलों में एक बड़ी संख्या बांग्लादेशी घुसपैठियों की है। खासकर ये कारोबार चिकन नेक पट्टी में ज्यादा होता है(पूर्वोत्तर से बाकी भारत को जोड़ने वाले 32 किलोमीटर लम्बे और करीब 24 किलोमीटर चौड़े सिलीगुड़ी कारिडोर को चिकन नेकपट्टी कहते हैं)। आज के वक्त में घुसपैठियों के मुद्दे पर चुप्पी साधे बैठी कांग्रेस की सरकारों के दौरान में अवैध घुसपैठ का मसला खूब उठा था और इस पर कार्रवाई के लिए दावे भी हुए थे। जिनमें सबसे बड़ा दावा था बांग्लादेश सीमा पर तारबंदी करने का, लेकिन सियासत के खेल में ये काम भी अधूरा ही रहा। अब हालत ये है कि हमारे भारतीय जवान बेहद मुश्किल हालात में खुली सीमा पर चौकसी करते हैं और उन्हें आजतक आधुनिक हथियार तक नहीं दिए गए, तारबंदी तो छोड़ ही दीजिए।
ये जानना जरूरी है कि यूपीए सरकार के दौरान तत्कालीन गृह राज्यमंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल ने खुद डेढ़ करोड़ बांग्लादेशी घुसपैठियों की बात स्वीकार की थी। इतना ही नहीं बांग्लादेश से वैध तरीके से वीजा लेकर आए करीब 15 लाख बांग्लादेशी भी भारत में कहां गए किसी को नहीं पता। अगर और पीछे जाएं तो 6 मई 1997 को संसद में दिए बयान में तत्कालीन गृह राज्यमंत्री इंद्रजीत गुप्ता ने माना था कि देश में एक करोड़ बांग्लादेशी घुसपैठिए हैं। ये संयुक्त मोर्चा की सरकार के वक्त की बात है जिसमें स्वनामधन्य धर्मनिरपेक्ष नेताओं की पूरी मंडली सत्ता में हिस्सेदार थी।
अब पूरे मामले का एक दूसरा पहलू भी समझिए। सर्वे के मुताबिक पश्चिम बंगाल के 52 विधानसभा क्षेत्रों में करीब 80 लाख और बिहार के 35 विधानसभा क्षेत्रों में करीब 20 लाख बांग्लादेशी घुसपैठिये हैं। जिनमें से ज्यादातर मतदाता पहचान पत्र, आधार कार्ड जैसी सुविधाएं ले चुके हैं। अब जाहिर है कि इतनी बड़ी संख्या, या यूं कहें इतना बड़ा वोटबैंक सबको ललचा रहा है। खासकर विपक्ष की सर्वमान्य नेता बनने का सपना पाल रहीं ममता बनर्जी को सबसे ज्यादा।
अब कुछ मौजूं सवाल हैं, पहला सवाल कि क्या ममता बनर्जी के लिए देश से बड़ी अहमियत उनकी सियासत रखती हैं?....क्या तुष्टिकरण में अंधी हो चुकीं ममता बनर्जी को ये भी नहीं दिख रहा कि जिस बुलेट ट्रेन को वो फालतू बताती हैं उससे कई गुना रकम घुसपैठियों को अपना पालतू बनाने में खर्च हो रही है? क्या ममता बनर्जी एक खास तबके को खुश करने के लिए अपने जीवन की सबसे गंदी और घटिया सियासत पर उतर आई हैं? सवाल बड़ा ये भी है कि विपक्ष के बाकी दल आखिर इस मसले पर खुलकर बोलने से क्यों हिचकिचा रहे हैं? ये माना कि भारत की छवि और भारत की संस्कृति सबको गले लगाने की है...मगर क्या जो लोग भारत में आकर, भारत का खाकर, भारत में पलकर, बढ़कर आईएसआई जैसे देश विरोधी तत्वों के हाथों की कठपुतली बन चुके हैं उन्हें भी हम पालकर रखें।
अपने आसपास देखिए, खासकर बड़े शहरों में, झुग्गियों में जाइए, मलिन इलाकों में जाइए और शक के दायरे में आने वाले किसी भी एक बांग्लादेशी को ध्यान से निगरानी के घेरे में रखिए, वो यकीनन किसी ना किसी अपराध में लिप्त मिलेगा, ऐसा में स्वंय के अनुभव से दावा कर रहा हूं। सवाल उठता है कि आजादी के 70 साल और बंग्लादेश के उदय के करीब 48 साल बाद भी हम अपनी सीमा सुरक्षा को लेकर गंभीर क्यों नहीं हो पाए? और एक सरकार धीरे धीरे से ही सही अगर गंभीरता से कदम उठा रही है तो पेट में दर्द क्यों हो रहा है? याद रखिए ममता जी आप ने जो आग से खेलने और खून खराबे वाली बात की है उसकी नौबत तभी आएगी जब आप जैसे नेतागण मुंह फाड़कर सिर्फ अपनी निजी सियासत और स्वार्थ की वजह से मानवाधिकार का रोना रोयेंगे। वरना किसी नेता और किसी घुसपैठिये की हैसियत नहीं कि वो भारत सरकार की नीतियों के सामने आंख से आंख मिलाकर खड़ा हो जाए। वो लोग इसीलिए खड़े होंगे क्योंकि उन्हें पता है कि उनके पीछे आप जैसे छद्म सेकुलर खड़े हैं। सिर्फ आप नहीं आपके जैसे और भी हैं यहां। इसलिए कृपया राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर राजनीति से बाज आइए और यकीन मानिए अगर वाकई घुसपैठियों को बाहर करने और उन्हें उनके देशों के सौंपने का फॉर्मूला काम कर गया और आप ही नहीं आपके सरीखे तमाम राजनीतिक दल कम से कम इस मुद्दे पर सरकार के साथ दिखे तो आपकी सियासत और चमककर सामने आएगी और सही मायनों में तभी आप मोदी का मुकाबला करने की स्थिति में होंगी। वरना जान लिजीए कि आपके कदम में सच्चे हिन्दुस्तानियों के मन में चाहे वो हिन्दू हों, मुस्लिम हों, सिख हों, ईसाई हों....इन सबके मन में आपके प्रति ऐसी नफरत भर दी है कि आपका दशकों का पुराना संघर्ष इस तुष्टिकरण की कोशिश की आग में जलकर भस्म हो जाएगा और आप सड़क पर नजर आएंगी। इसलिए आपको सलाह है कि देश की सुरक्षा के मसलों पर सियासत से बाज आइए और अपने सियासी दोस्तों को भी समझाइए। वक्त बदल चुका है तो अपनी सियासत का तरीका भी बदल डालिए।

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