गुजरात का 'जनेऊ' बनाम गोरखपुर का 'जनेऊ'
बात उन दिनों की है जब मैने गोरखपुर यूनिवर्सिटी में स्नातक प्रथम वर्ष में प्रवेश लिया था। वो दौर था जब यूपी सरकार ने छात्रसंघ चुनावों पर उससे पहले तीन सालों से रोक लगा रखी थी। उस दौर में गोऱखपुर यूनिवर्सिटी के छात्रावास का माहौल लगभग कॉन्वेंट स्कूलों के किसी छात्रावास की तरह ही होता था। वार्डन से लेकर यूनिवर्सटी के चपरासी तक हड़का देते थे। फिर यूपी में सत्ता बदली। और छात्रसंघ चुनावों का शोर माहौल पर तारी होना शुरु हुआ। अचानक छात्रावास के परिसर में बड़ी बड़ी लग्जरी गाड़ियों की आवाजाही बढ़ने लगी। झक्क सफेद कमीज और पैंट पहने अंकल की उम्र की चेहरे टहलते घूमते दिखने लगे जिनके पीछे मिनी गन लिए हुए कुछ मुस्टंडे भी होते थे। गन और गाड़ी के कॉकटेल ने नए छात्रों को मगन कर दिया सब अपने अपने हिस्से के फलाने और चिलाने भइया से सटने लगे। उसमें भी क्वालिस वाले भइया आकर छात्रावास में किसी लड़के के कमरे में बैठ गए तो फिर भौकाल का तो पूछिए मत। अगल बगल वाले बेबसी वाली निगाहों से देखते कि काश हमें भी ये सौभाग्य मिल जाता। वक्त बीतता गया और धीरे धीरे ऐसे भइया लोगों की तादाद बढ़ने लगी। क्लास कम होने लगे, गेट ...